पुरुषत्व

बेटों का  संघर्ष किसी ,

से कम नहीं होता।

बचपन से बताया जाता,

लड़का होना आसान नहीं होता।

पढाई के लिए छोड़ना,

पड़ता है अपना घर द्वार।

घर से होती दूरी तो कई,

ख्वाहिश में रह जाती हर बार।

पढ़ने के बाद नौकरी की,

चिन्ता सताती है।

यह सोच कर रात भर,

फिर नींद नहीं आती है।

घर पर पिता का कुछ बोझ,

मैं भी कम करूं।

बहन की शादी में मां का,

कुछ सहारा बनूं।

मां ने जो अपनी इच्छा,

मार दी मेरी पढ़ाई में।

उन्हें मैं पूरा कर सकूं,

अपनी कमाई में।

पत्नी बन जो आई है,

उसके अरमान कुछ होंगे।

बच्चों की जरूरत के,

कुछ  सामान भी होंगें।।

किसी से भी न पुरुष,

अपनी व्यथा बताता है।

दिन रात मेहनत करता है,

न लबों पर आह लाता है।

शहनाज़ बानो

उच्च प्रा0 वि0-भौंरी

चित्रकूट,उत्तर प्रदेश