कभी लिखूँ मैं अपना दुखड़ा
कभी रोऊँ तुझे रचते रचते
कभी हसुँ तुझे लिखते लिखते।
तेरे भीतर कितने भाव समाते
तुझसे ही जनमानस तर जाते
तुझमें ईश्वरीय शक्ति समायी
ज्ञानी ही जाने तेरी गहराई।
मर्म तेरा है बड़ा अनोखा
हर कोई ले तेरा झरोखा
हम भी उतरे तेरे रण मे
मन मोह लिया तूने क्षण मे।
कविता ने मुझको जीना सिखलाया
कविता ने अपना सच्चा साथी बनाया
कविता मे देख रही सारा संसार
कविता ही मेरे जीवन का आधार।
कविता ही जीवन का संस्कार
मरती नहीं कविता, मर जाता यह संसार
कविता संगत और मेरी संस्कृती है
मिट्टी, पानी, हवा, धूप और प्रक़ृती है।
अर्चना सिंह
ग्रेटर नॉएडा (उत्तर प्रदेश)