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हो रही पीड़ा बहुत
क्यों दूर उनसे मैं हुआ
लगता था अपना उन्हें
फिर क्यों पराया मैं हुआ..।।
था कभी उनको प्रिय मैं
थी नहीं कमियां कोई
हैं गिनाते खामियां अब
जाने ऐसा क्या हुआ..।।
थी कभी मंजिल की चाहत
ख़्वाहिशें थीं साथ में
अब अलग मंजिल है उनकी
मैं अकेला फिर हुआ..।।
क्यों बदल जाते हैं रिश्ते
आसरा देकर हमें
मिल गया उनको सहारा
बेसहारा मैं हुआ..।।
आधुनिक परिवेश शायद
है बदल देता हमें
सीख से ही सीख लेकर
मैं भी अब अपना हुआ..।।
मैं भी अब अपना हुआ..।।
***विजय कनौजिया***
ग्राम व पत्रालय-काही
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