मेरे नैनो से गर तेरे नैना मिलें,
प्रीत पावन सुमन उर के आंगन खिले।
मौन फिर जो कहे मौन सुन ले अगर,
फिर तो मौसम खुशी के सुहावन मिले।
वार नैनों के मुझ पर चलाओ अगर,
आ के सपने में मुझको सताओ अगर।
प्रीत के गीत लिखते वो सच होंगे फिर,
हम ये समझेंगे रिमझिम से सावन मिले।
साथ तेरा मिले फिर तो कुछ बात हो,
प्रेम रस से सनी प्यारी सी बात हो।
गम के बदरा सभी दूर हो जाएंगे,
प्रीत के गीत तेरे लुभावन मिले।
अशोक प्रियदर्शी
चित्रकूट, उ0प्र0
मो0 6393574894