पुस्तक समीक्षा

  युगीन संदर्भों को ध्वनित करती हैं ग़ज़लें 

      ग़ज़ल नियमानुसार बादशाहों के दरबारों से होकर कोठों से सफर करते हुए जब आम जनमानस तक पहुंचती है , तो एक नई शक्ल तैयार करती है l और वह शक्ल होती है , नंदी लाल ‘निराश’ की l वह एक ऐसे ग़ज़लकार हैं , जो अपने उपनाम से कतई मेल नहीं खाते, निराश जी को पढ़ते हुए कभी नहीं लगता कि वह निराश हैं l जहां तक मुझे लगता है वह आशा से भरे हुए हैं l और इस शेर को पढ़ते हुए लगता है l यथा.. 

     दे सको  तो जिंदगी  भर  के लिए दे  दो उसे, 

     एक रोटी से किसी का कुछ भला होता नहीं l

 आप दान का दिखावा करने वाले लोगों का भी विरोध करते हैं l आपके यूं तो अब तक दो ग़ज़ल संग्रह मंजरे आम पर आ चुके हैं  आंगन की दीवारों से आपका तीसरा गज़ल संग्रह है, आपके सभी संग्रह पढ़ चुका हूं, जिनमें “आंगन की दीवारों से” श्रेष्ठ ग़ज़ल संग्रह है l संग्रह की पहली ही रचना हृदय पर अपनी अलग छाप छोड़ती है l मां के प्रति अगाध प्रेम आपकी और इस पुस्तक की प्रथम विशेषता है आंगन की दीवारों से होते हुए गुजरना एक अलग ही अनुभव का अहसास करवाता है l इस संग्रह का जब मैं पढ़ रहा था तो मुझे महसूस हो रहा था, कि मैं नंदी लाल जी से मिल रहा हूं,  एक ऐसे व्यक्ति से मिल रहा हूं , जिस के स्वर में पीड़ा है l  किसानों, मजदूरों, बेरोजगारों, महिलाओं, बच्चों के प्रति गहरी संवेदना है l आप बेबाक फक्कड़ और निडर हैं l ग़ज़ल कहने का अनोखा तरीका आपको भीड़ से अलग कर देता है l आपकी ग़ज़लें युगीन संदर्भों को ध्वनित करती हैं l आपका एक और शेर मन को झकझोर देता है l

यथा.. 

     वो बूढ़ा हो गया चक्कर लगाकर के दीवानी के l   

     वकीलों  की दलाली बाबू  की   निगहबानी के l

     न  देखे खेत   खलिहान जीवन  में कभी  इसने, 

     हमें   टाटा   सिखाएंगे  पुराने   गुर किसानी के l

 आपका अंदाज पाठकों के सीधे हृदय में उतर जाता है l कई बार तो आप सीधे पाठकों से संवाद करने लगते हैं l यह भी संग्रह की एक खास विशेषता है l आपने जिस तरह से इस संग्रह को सजाया है l उसकी जितनी तारीफ की जाए कम है l मेरे विचार से तो ऐसा कोई कारण नहीं है l जिससे पाठक संग्रह को नकार सकें l खूबसूरत आवरण पृष्ठ के साथ 153 गज़लों को इसमें एक साथ रखा गया है l  पुस्तक रुचिकर, संग्रहणीय और वंदनीय है । ग़ज़ल के दीवानों को यह संग्रह अवश्य पढ़ना चाहिए l

 पुस्तक – आंगन की दीवारों से 

 कवि  – नन्दी लाल 

 प्रकाशन  – निष्ठा प्रकाशन गाजियाबाद 201102  

 समीक्षक – शिव सिंह सागर 9721141392

 मूल्य    ₹   220