कलाकृति

शब्दशिल्प के डाइंग रूम

सजी तुम्हारी ये पेंटिंग

तुम्हारे प्यार की निशानी है।

कलात्मक सौदर्य में

आत्मचिंतन में डुबी ये

कलाकृति बेजुबान जरूर है

पर मन की गठाने

परत दर परत खोलती है।

गंभीर मुद्रा लिए महिला

सशक्तिकरण के दरवाजे

अपनी उड़ानों के पंखों

की तरह खोलती है।

अंधियारे में रोशनी के

गीत जैसे गुनगुनाती है।

तुम और तुम्हारी पेंटिंग

प्रियवर रिश्तों के महकते

बीज जैसे बोती है

बिन बोले नये नये

संदभो के नये -नये  अर्थ

हर पल -पल कहती है।

    लाल बहादुर श्रीवास्तव