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मन में फैले अंधकार को
जाति पाति के विकार को।
मानवता से दूर करने को
बस मन का दीप जला लेना ।
मन कलुषित हो जाता है
तब संस्कार मर जाता है ।
संस्कारों को वापस लाने को
बस मन का दीप जला लेना ।
मानवता जब-जब आती है
वो रामराज्य को लाती है ।
फिर से रामराज्य लाने को
बस मन का दीप जला लेना ।
पुरुषोत्तम के सुविचारों को
उनके दृढ़ आदर्श आधारों को ।
फिर से जग में पोषित करने को
बस मन का दीप जला लेना ।
भ्रमित मन के कुधारों को
रघुवर के भूले सुविचारों को ।
वापस फिर से लाने को
बस मन का दीप जला लेना ।
अपनों को पास बुलाने को
हनुमत को गले लगाने को ।
प्रभु के आदर्श बचाने को
बस मन का दीप जला लेना ।
मैं कसम राम की खाता हूँ
शबरी की याद दिलाता हूँ ।
इस प्रेम को उर में लाने को
बस मन का दीप जला लेना ।
अंतर्मन को फिर से जगाओ
राग-द्वेष को दूर भगाओ ।
छोड़ जग के प्रलोभन को
बस मन का दीप जला लेना ।
जीवन का निरादर करके वालों
सत्कार मरण का करने वालों ।
माथे पर कलंक धरने वालों
बस मन का दीप जला लेना ।
कण- कण में फैले अंधकार को
असहिष्णुता के बढ़ते भार को
राम रहीम दोनों को संग ले
बस मन का दीप जला लेना ।
नफ़रती विशाल हिम खण्डों को
ज्ञान की लौ से गला लेना ।
लाखों दीप जलाने से बेहतर
बस मन का दीप जला लेना ।
थोड़ा सा कष्ट उठा लेना
रघुवर को मन में बिठा लेना ।
मानवता को जिंदा रखने खातिर
बस मन का दीप जला लेना ।
हो गलत बात तो माँफ करो
नहीं तो मन को साफ करो ।
मुझको भी गले लगाने को
बस मन का दीप जला लेना ।
एम•एस•अंसारी”शिक्षक”
कोलकता पश्चिम बंगाल