बस मन का दीप जला लेना ।

“””””””””””””””””””””””””””””””””

मन   में  फैले  अंधकार  को 

जाति  पाति  के  विकार को।

मानवता  से  दूर  करने   को

बस मन का दीप जला लेना ।

मन  कलुषित  हो  जाता  है 

तब  संस्कार  मर  जाता  है ।

संस्कारों को वापस लाने को

बस मन का दीप जला लेना ।

मानवता जब-जब आती  है

वो  रामराज्य  को  लाती है ।

फिर  से  रामराज्य  लाने  को

बस  मन का दीप जला लेना ।

पुरुषोत्तम  के  सुविचारों  को

उनके दृढ़ आदर्श आधारों को ।

फिर से जग में पोषित करने को

बस  मन  का  दीप  जला लेना ।

भ्रमित  मन  के  कुधारों  को

रघुवर  के  भूले सुविचारों को ।

वापस   फिर   से   लाने  को 

बस मन का दीप जला लेना ।

अपनों को पास बुलाने को

हनुमत को गले लगाने को ।

प्रभु  के  आदर्श बचाने को

बस मन का दीप जला लेना ।

मैं कसम राम की खाता हूँ

शबरी की याद दिलाता हूँ  ।

इस प्रेम को उर में लाने को

बस मन का दीप जला लेना ।

अंतर्मन को फिर से जगाओ 

राग-द्वेष  को  दूर  भगाओ ।

छोड़  जग  के  प्रलोभन  को

बस मन का दीप जला लेना ।

जीवन का निरादर करके वालों 

सत्कार मरण का करने वालों ।

माथे  पर  कलंक  धरने  वालों 

बस  मन  का  दीप जला लेना ।

कण- कण में फैले अंधकार को 

असहिष्णुता के बढ़ते भार को

राम रहीम दोनों को संग ले 

बस मन का दीप जला लेना ।

नफ़रती विशाल हिम खण्डों को 

ज्ञान की लौ से गला लेना ।

लाखों दीप जलाने से बेहतर 

बस मन का दीप जला लेना ।

थोड़ा  सा  कष्ट  उठा  लेना

रघुवर  को  मन  में  बिठा लेना ।

मानवता को जिंदा रखने खातिर 

बस मन का दीप जला लेना ।

हो गलत बात तो माँफ करो

नहीं तो मन को साफ करो । 

मुझको भी  गले  लगाने  को

बस मन का दीप जला लेना ।

एम•एस•अंसारी”शिक्षक”

कोलकता पश्चिम बंगाल