समता के नव पल्लव

अंतरमन का सब तमस मिटे।

जग सघन अंधेरा कलुष हटे।।

सुख-शांति धरा में हो हर पल,

हिंसा के बंधन सहस कटें।।

समरसता के दीप जलायें।

मानवता के गीत उगायें।

नीरस आंखों में बो सपने,

महल कुटी को मीत बनायें।।

डोर नेह की कभी न टूटे।

हृदय-हाथ सम्बंध न रूठे।

तोड़ें व्यर्थ विवादों के घट,

निर्मल सत्य सरस उर फूटें।।

सरस प्रेम के शुभ सुमन मिलें।

ह‌दयों में करुणा अमन पले।

समता के नव पल्लव झूमें,

उपवन सा महके वतन खिले।।             

        • प्रमोद दीक्षित मलय

शिक्षक, बांदा (उ.प्र.)

मोबा. 94520-85234