गीत

छोड़ कर इस सूर्य की अब जी हुजूरी।

है अँधेरों से हमें लड़ना जरूरी।

 झिलमिलाती रोशनी में  जगमगाकर।

जी रहा इंसांन तम दिल में बसाकर।

आदमी की देखिए खुदगर्जियाँ अब

हँस रहा है दिल गरीबों का दुखाकर

खा रहा है बेबसों की वो मजूरी।

 जिंदगी लाचार सी अब रोड पर है।

बेबसी बेचारगी हर मोड़ पर है।

टूटती ही जा रही हर आस अब तो

पर सियासत की नज़र गठजोड़ पर है।

लग रहे लाचार होरी और झूरी।

ये नहीं मुमकिन अंधेरे ही छलेंगे।

देख लेना एक दिन ये भी ढलेंगे।

रोशनी का राज्य होगा जब धरा पर

मुँह छिपाकर हाथ उस दिन ये मलेंगे।

हर तरफ दिन रात होंगे खूब नूरी।

सत्यवान सत्य

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