झाँसी की मिट्टी में जन्मी,
महारानी झांसी की परछाई थी।
दुर्गा दल की सेनापति,
ओ वीरांगना झलकारी थी।
बुन्देल खण्ड की वीर पुत्री,
स्वतंत्रता सेनानी थी।
गोरों को ललकारने वाली,
नारी शक्ति झलकारी थी।
शेरनी जैसी दहाड़ उसकी
रण भूमि में गरज उठती थी
रक्त से धरती रंग देती,
तोप, तलवारों से सजी नारी थी।।
छल्ली हो गई खुद गोलियों से,
पर नाम रानी का कर गई।
लक्ष्मी बाई की जान बचाकर,
खुद प्राण त्यागकर चली गई।।
झलक कभी झलकारी की,
मिट नहीं सकता झाँसी से।
प्राण न्यौछावर किया था उसने,
रक्त से भरी लाली से।।
अंग्रेजों को धूल चटाया,
ओ कोलियों की राजदुलारी थी।
शक्ति की अखण्ड स्वरूपा,
ओ वीरांगना झलकारी थी।।
प्रमोद नवरत्न
बिलासपुर (छ. ग.)