धुएं का शामियाना !

धुएं का शामियाना 

अब तना  –

गगन में ।

सांसों का लेना भी –

अब हुआ दुभर ।

मौसम कोई भी –

अब रहा न मनहर ।

ज़हर का आशियाना 

अब बना  –

गगन में ।

निर्दोष पेड़ भी अब  –

दम तोड़ रहे हैं ।

मौसम भी अपना –

रुख़ मोड़ रहे हैं ।

धुंध का मालिकाना 

हक़ हुआ  –

गगन में ।

देह नदियों की भी –

अब नीली पड़ गईं ।

ऋतुएं पहाड़ों की –

अब चांटें जड़ गईं ।

बर्फानी पारा भी 

अब चढ़ा –

गगन में ।

ज़िंदगी हमारी अब  –

दांव पर लगी है ।

शुद्ध हवाओं की अब –

ज़ेबें कटी- फटी हैं ।

हवाओं को साथ ले  

धुआं चला –

गगन में ।

+ अशोक ‘ आनन ‘ +

   मक्सी