मासूमी से बाते करते, समझदारी में कच्चे थे
बड़े होने का शौक चढ़ा था, जब हम छोटे बच्चे थे
नंगे पैर दौड़ लगाते, सजा कर ख्याबो के लच्छे थे
न जाने क्यों अब बड़े हो गए, हम छोटे ही अच्छे थे
स्कूल जाना वापस आना, संग दीदी के होती थी
डांट पड़ती हमको, जब गुम कोई चीज होती थी
टूटे दांतो मे दर्द होगा, बस इतनी चिंता होती थी
अब चिंता से गहरा नाता, तब नादानी में सच्चे थे
न जाने क्यों अब बड़े हो गए, हम छोटे ही अच्छे थे
राजा जैसा रख रखाव और जेवर गुड़ियां होती थी
नखरे बढ़ते जाते मेरे, घर में रौनक होती थी
दालमोट संग बिस्कुट खाना, ऐसी सुबह तब होती थी
अब हड़बड़ में जिंदगी, तब हँसी के घरों में छज्जे थे
न जाने क्यों अब बड़े हो गए, हम छोटे ही अच्छे थे
दोस्त यार अब साथ नही, गपशप किसके साथ करे
नियम बना है जीवन मेरा, नियम से नियम फॉलो करे
खुद को जीना भूल गए, हम करे, अब क्या करे
भले हमारे पंख नही पर, उड़ाते नियम के परखच्चे थे
न जाने क्यों अब बड़े हो गए, हम छोटे ही अच्छे थे
आस्था दीक्षित कानपुर (उत्तर प्रदेश)