मधुशाला

जीवन कठिन संतापो का, 

रोज पिएगा विष का प्याला।

कुसूमों का जीवन बीत गया, 

उभरेगा अब पैरों का छाला।

लौटेगा उस गलियारे में,

जब डर जायेगा भोलाभाला ।

चहकेगा वो फिर झूमेगा, 

जब भी महकेगी मधुशाला।

जग का ताना भूल गया वो, 

भूलेगा अधरों की ज्वाला।

धूमधाम यहां चहल – पहल,

मनमौजी होगा पीने वाला।

जर्जर होगा न कोई क्षण, 

दिखेगा  हर ओर उजाला।

गलियारे पे पैर धरों फिर,

रोज बुलाएगी मधुशाला।

आस्था दीक्षित 

कानपुर (उत्तर प्रदेश)