” उत्कृष्ट अहंकार “

 मेरा ही साथी  जब, उच्च  पद  पा  गया।

पाते ही पद उस पे, पद का मद छा गया।

भर  गया  उसकी  रगों में अब  अहंकार।

बोलने  लगा  बोली, दम्भ  भरी ललकार।

मैंने  कहा- भूल  बैठा, वर्षों  का  साथ।

पद मद में भूला, बचपन की  हर बात।

अरे  यह  पद तेरा, साथ न  निभाएगा।

आज है तेरा कल,और का हो जाएगा।

बोला- विलक्षण कुछ, तत्त्व-सार होता है।

फालतू  में भला किसे, अहंकार  होता है।

बालपन  में  बजरंग, नटखट  थे  शैतान।

साधना में साधकों को,करते थे हलाकान।

बरदानी शक्तियों का, मद सवार नहीं था?

अबोध ही सही किन्तु, अहंकार नहीं था?

जनता  हूँ  अहंकार, के  तीन  हैं  प्रकार।

तामसिक,राजसिक, सात्विक  अहंकार।

निराभिमानी  व्यक्ति, आत्मिक अहंकारी।

ज्ञानी-विज्ञानियों को,कम ही है जानकारी।

भाषा,जाति, देश पर,अभिमान भी सही है।

यह बात मैंने नहीं,’राष्ट्रकवि’ गुप्त ने कही है-

“जिनको न निज गौरव, देश पर है अभिमान।

नर नहीं नरपशु निरा, जीवित मृतक  समान।”

यही  तो  विशुद्ध, ‘स्वाभिमानी’  व्यवहार है।

सतोगुणी  सात्विक, उत्कृष्ट  अहंकार  है।

              ✍️अमर सिंह राय 

            नौगांव-छतरपुर, मध्यप्रदेश

              मो. 9425342534