धुंध इश्क़ की

गहरे कोहरे सा है इश्क़ मेरा ।

तुमसे आगे कुछ दिखता नहीं ।।

क़ोशिश करना इंसानी फ़ितरत है ।

हर सीप में मोती मिलता नहीं ।।

तबस्सुम को तरसे बैठें हैं सब ।

उनके लबों पर गुलाब खिलता नहीं ।।

हमसे शुरू है आशिकों की पीढ़ी ।

ज़माना उसमें हमको गिनता नहीं ।।

ये इश्क़ है नायाब नूरानी हीरा ।

हर चौराहे पर “काज़ी” ये बिकता नहीं ।।

डॉक्टर वासिफ़ काज़ी 

काज़ीकीक़लम

28/3/2 , अहिल्या पल्टन ,इंदौर 

जिला-इंदौर ,मध्यप्रदेश

8085901021