क्या कभी आपने
अपने आप को
खुद में पहचानने,
खोजने की कोशिश की है,
उस सच की तलाश की है,
जो आपके अंदर
सदियों से समाया हुआ है,
आपके अंदर,
तिल तिल कर जिंदा है
आप के मनोभावों के साथ
बाहर आना चाहता हो,
आपने अंदर के मासूम बच्चे
को जीने की कोशिश की है।
आप कभी यूं ही बेवजह
मुस्कुराये,
खिलखिलाये है,
रोज एक नया मुखौटा लेकर
एक नए-नए पलों को
जीते चले जा रहे हैं,
जिंदगी के सच का
सामना नहीं कर सकते हैं,
वही सच जो आपको
वर्तमान का आईना
भी दिखाता है,
आप भागते हैं कड़वी
सच्चाईयों से,
और निकल पड़ते हैं,
नए चेहरे की तलाश में
जो आने वाले कालचक्र में
आपको नया मुखौटा देगा,
और अंदर की सच्चाई से
दूर और दूर ले जाएगा,
बेवजह अनासक्त,
चलो किसी नन्हे मासूम की
भोली मुस्कान में खो जाते हैं,
जिंदगी के बहुत नजदीक ।
संजीव ठाकुर,रायपुर, छत्तीसगढ़, 9009 415 415