उनकी तड़फ

  बाबूजी कुछ दिनों से बिमार है। आंखें बंद कर बिस्तर पर सोये रहते है। पत्नी कृष्णा भी उनको देख-देख कर मन ही मन व्यथित है। डाक्टर के बताये अनुसार ईलाज चल रहा है। पास पडौसी , मोहल्ले के बच्चे , इनके साथी आकर कुशलक्षेम पुंछ जाते है । वे बोल नहीं पाते बस टुकूर टुकूर देखते रहते है हंसी तो जैसे गायब ही हो गयी है। जैसे तैसे हाथ जोडकर अभिवादन करने का प्रयास करते है।

       आज सैर पर साथ जाने वाले मित्र सुरेश मिलने आये। दरवाजे से ही आवाज लगाई कहां है हमारा काना । घुमने नहीं आ रहा है आजकल।

     गुटनों के दर्द से कराहती कृष्णा पलंग से उठते हुए बोली आओ भैय्या आओ दैखो इनको क्या हो गया है। बोलते बोलते कृष्णा की आंखें नम हो आई।

       अरे भाभी चिंता न करो सब ठीक हो जायेगा। ये बहुत हिम्मत वाला है। हम सबको तो हंसाता रहता है ।

         क्यों कानजी देख तेरा दोस्त आया है मिलने । लडाई कौन करेगा हमसे। बाबूजी ने पलके ऊपर कर सुरेश की तरफ देखा। ऐसे क्या टुकूर टुकूर देख रहा है। तेरे घर मे काना कह दिया तो नाराज हो रहा है क्या ? कौन कहेगा कृष्णकांत । कितना लम्बा नाम है। जबान नी दुखेगी बुढापे में ।

          नहीं नहीं — में सिर हिलाया , पलकें झुक गई आंसू बह निकले। कृष्णा उनकी आत्मीयता समझ गई । सिराहने पर बैठकर पल्लू से आंखों का पानी सोखा। सिर को सहलाने लगी ।

    भैय्या पेपर , पुस्तकें पढ – पढकर सब ताकत तो खतम कर दी इन्होंने। पता नहीं कितना बोझ लिए है मन में । मैं तो कई बार झगड़ती हूं । इस उम्र में आंखे और दिमाग पर इतना बोझ — ! कह- कहकर थक गई हूं, पर मानते ही नहीं। बोलते बोलते कृष्णा की आवाज रूंआसी हो गई।

         नहीं भाभी नहीं, पढना तो हमारे दिमाग की  खुराक है । बुढापे में सब — दूर — होने लगते है। ये किताबें,अखबार ही तो है हमारे साथी ।

       हां भैय्या कह तो आप सही रहे है । मैं भी यही सोच रही हूं । लगता है इनका बूढ़ा मन कहीं डोल रहा है। मन में कोई तड़फ है। आप मेरा एक काम करोगे ? अभी कुछ दिन से पेपर नही पढा इन्होंने, तो आप पेपरवाले से पेपर ओर कोई नई पुस्तकें, जिसकी चर्चा आप दोस्तों मे होती रही हो, ले आना । मैं इनके मन की सब चीजे दे रही हूं बस ये ही मै नहीं दे पा रही थी।

         हां भाभी मैं अभी लेकर आता हूं। आप इनको फल , दूध खिलाओ पिलाओ मैं अभी आया ।

         स्पंजवाश कर फल , उपमा थोडा दूध देकर सहारे से बैढाते हुए कृष्णा ने कहा आपके दोस्त अभी आपकी प्यारी चीजें लेकर आ रहे है । जरा तो मुस्कुरा दो अब। सुनकर बाबूजी के चेहरे पर हल्की मुस्कान के साथ खुशी झलक आई।

        लो कानजी देखो , मै आपकी जान लेकर आया हूं दरवाजे से ही सुरेश आवाज लगाते हुए तेज चलते हुए आया। देखते ही बाबूजी ने खुशी में कुछ बोलने का प्रयास करते हुए सुरेश को बैठने का इशारा किया। बैठते बैठते सुरेश ने अखबार ओर अभी अभी प्रकाशित पुस्तकें टेबल पर जमा दी।

           तभी कृष्णा भाभी चाय बिस्किट ले आई । बोली ये अच्छा किया भैय्या आपने । मुझे लगता है अब इनकी जान में जान आएगी।

           पुस्तकें ओर अखबार की खुशबू बाबूजी को प्रफुल्लित करती गई। धीरे धीरे इम्यूनिटी का संचार होने लगा। बीच बीच में थोडा पढते , थोडा मै पढकर सुना देती हूं। चेहरे का नूर लौटने लगा है। लगा दिल की खाई पटने लगी है । इनके दिल की तड़फ खत्म हो रही है।

                 बृजनेहरू पाटीदार जनकपुर

                       नीमच म.प्र