इस कदर रूह में वो समाने लगे

इस कदर रूह में वो समाने लगे,

लफ्जों से हमको चुराने लगे ।

इश्क का ये मौसम क्या आया,

दीवाना हमें वो बनाने लगे ।

इस कदर रूह में वो समाने लगे …

लफ्जों से हमको चुराने लगे……..

बन खुश्बू रूह में वो समाने लगे,

 लफ्ज़ों का जादू चलाने लगे।

बड़ी मुश्किल से संभला था दिल ये मेरा ,

इश्क के झोंकों से वो बहकाने लगे।

इस कदर रूह में वो समाने लगे…

लफ्ज़ों से हमको चुराने लगे…..

उफ़ ये कयामत की रात क्या कहें ,

कर इशारे वो हमको सताने लगे।

सोचा बहुत हम न जाए उधर,

उनकी गलियों में फिर भी हम जाने लगे।

इस कदर रूह में वो समाने लगे…

लफ्जों से हमको चुराने लगे ……

चांद अंबर पर तकते वो शाम ओ सहर ,

हम झरोखे पर उनकी नजरें बिछाने लगे।

अब दिल ये मेरा न बस में रहा, 

स्नेहिल हम खुद को समझाने लगे।

इस कदर रूह में वो समाने लगे…

लफ्जों से हमको चुराने लगे…..

पूनम शर्मा स्नेहिल