राज – ए- मोहब्बत ‘

  तेरी मोहब्बत को

बिना  बोले

मैं पढ़ लेती हूँ 

तुम्हारी आंखें में 

बिना कुछ कहे ,

तुम्हारे दिल की बेचैनी को ,

समझ लेता हूं मैं 

 तेरी जुबा में 

 तुम्हारे आँखों में

छुपी हुई हूं मैं ,

मेरे दिल में छिपे हुए हो तुम

 अक्सर मुस्कुरा देती हूं मैं 

 बिना मिले ही ,

तुम्हारे हाल बयां कर देती हूँ

क्या ताल्लुक है ?

हमारे दरमियां ….

बस यूँ ही चंद सवाल

 खुद से पूछती हूँ,

इन्ही सवालों के उत्तर 

 तलाशने में खो  जाती हूँ

 किसी कोने से 

तुम्हारे दिलो की आवाज सुनाई देती है,

सुनाई देती है मेरे कानों को

मेरे दिल की  धड़कन तेज हो जाती है

 ये भी  एक दौर है ,

मेरे  जिंदगी का 

शायद मैं  देखती हूं

  तुम्हारे बिना बोले ही

दिल में छुपी 

उस गुफ्तगू को

 जिस से मेरे दिल की धमनियां 

तेज हो जाती है

बिल्कुल तुम्हारे आवाजों की तरह,

काश तुम सुन पाते ,  ,

बहती हुई मेरी निगाहों को

खुद को पहचान  लेते 

   किसी इशारे की जरूरत 

ना पड़ती , 

शायद ये 

राज – ए – मोहब्बत ना होता

 कु. वर्णिका आर्य {एलिस  आर्य}

   बड़ौत , बागपत { उत्तर प्रदेश }