सियासती बेशर्मी और जनता का मौन

सियासत बेशर्म और नंगी तब होती है जब जनता गूँगी और बहरी हो जाती है। सियासती बेलगाम गधे बर्बादी तब फैलाते है जब विपक्ष अपनी फटी पतलून को रफू करने में ही व्यस्त रहता है। और इस देश में सियासत को जनता और विपक्ष दोनों ही ऐसे मिले है इसलिये यहाँ के सियासतदार जनसेवक नहीं होते हुए जनभक्षक बने हुए है। मुझे तो यह देश रोबोटों का देश लगता है सरकारी बटन दबता है और 130 करोड़ रोबोट सिर झुका कर आदेशों का पालन करते है। बड़ी हास्यास्पद और दयनीय स्थिति बन चुकी है लोकतंत्र की। सरफिरे आदेशों के परिपालन को पूर्ण कराने जब प्रशासकीय गैंग दमन पर उतरती है तो अंग्रेजो के शासनकाल की स्थितियाँ जीवंत हो उठती है। व्यक्तिगत समारोह में सीमित जनसमूह के तुगलकी आदेशों का पालन कराता हुआ प्रशासन जब अपने आकाओं के कार्यक्रमों में हजारों लोगों की भीड़ जुटाता है तब मन विवश हो उठता है तानाशाही के मानमर्दन के लिये।

मनमर्जी करता हुआ राजा जब मन की बात सुनाता है तो हास्य के साथ हृदय की गहराइयों से उसके लिये दुआ नहीं बद्दुआ ही निकलती है। कभी सोचता हूँ इन चिकने घड़ों पर पानी डालने से क्या होगा, पर अगले ही पल यह सोच आती है कि चिकनाई कभी तो हटेगी और मिट्टी फिर मिट्टी में ही मिलेगी। इसलिये प्रयास करता रहता हूँ। अगर हमारे देश जैसी जनता हिटलर को मिल गयी होती तो उसका राज अभी तक चलता परन्तु उसकी किस्मत इतनी अच्छी नहीं थी न ही उसने कहीं चाय बेची होगी जिससे उसकी किस्मत चमकती। पर यहाँ की जनता चाय की चुस्कियों में इतनी मदहोश हो गयी कि अब उनको मानसिक गुलामी में ही विकास के दर्शन होने लगे है। झूठ की हांडी में बनी खिचड़ी यहाँ की जनता को भगवान का प्रसाद लग रही है, और उसी बेस्वाद खिचड़ी को खाकर जनता जिंदा लाश की भाँति रोबोट बन चुकी है।

अपनी कमाई का आधे से ज्यादा सरकारी वसूली में देकर अपने को देशभक्त कहलाती जनता और बाकी बची कमाई को महँगाई की आग में झोंकती आवाम को जब नेताओं के मलाईदार झूठे भाषणों पर ताली बजाते हुए देखता हूँ तो देश का अंधकारमय भविष्य आँखों के सामने डरावने स्वप्न की भाँति दृष्टिगत हो ही जाता है। आखिर कैसे इंसान और अब इंसानी समूह मात्र पालतू जानवरों का झुंड बन गया और क्यों? वास्तव में धर्मान्ध भीड़ को जब कट्टरता की अफीम चटा कर दिवास्वप्न दिखाये जाते है तो कष्ट भूल कर सच्चाई से परे वह झूठ को ही अंगीकार कर लेता है। उसी झूठ को फैलाने वाला तथाकथित भाषण वीर उस धर्मान्ध और कट्टर भीड़ का स्वयंभू भगवान बन जाता है और वास्तविक भगवान मंदिरों में कैद बैठा वोट कमाने का साधन बन जाता है। जननेता जब वोट की भीख माँगने सार्वजनिक मंचों पर प्रहसन करते है नाचते है उलूलजुलूल बयान देते है तब ही अगर इन्हें आड़े हाथों ले लिया जाता तो आज यह स्थितियाँ निर्मित नहीं होती।

भीषणतम दंगो के आरोपी जब सत्ता के लालच में देश की एकता को तहस नहस कर के आम जनता को मूक बधिर बना सकते है उनसे विकास की आशा व्यर्थ और बैमानी है। और जब जनता और विपक्ष अपनी ही दुनिया में व्यस्त हो तो देश की बर्बादी को देखने वाली आँखे केवल आँसू ही बहा सकती है क्योंकि देश की चिंता और समृद्धि सोचने की बजाय आमजन झूठ के महिमामंडन को ही प्राथमिकता दे रहे है। सत्य लिखना जब अभिशाप बन चुका हो जहाँ सच बोलना राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में आ चुका हो जहाँ अब सत्यम शिवम सुंदरम नहीं झूठ का महिमामंडन होता हो वह देश अब विकास नहीं विनाश की और ही जा सकता है।

✍ शेखर