कैसा है ये गड़बड़ झाला ,
किसने किसको कैसे पाला।
कुछ रुपयों की खातिर साहब ,
चढ़ जाएंगे सत्रह माला।
इज्जत की रोटी ना भाए ,
उनको भाए रोकड़ काला।
कोई दादा जब मिलता है ,
लग जाता उनके मुख ताला।
रूखी सूखी वो ना चाहें ,
देना उनको बटर निवाला।
जीवन समझें गूढ़ पहेली ,
जैसे हो मकड़ी का जाला।
उनके घर जब आता संकट ,
जपने लगते रब की माला।
महेंद्र कुमार वर्मा
भोपाल [म.प्र.] मो–9893836328