एक दौर था चला गया!

एक दौर था चला गया

कुछ अमिट लकीरें 

जीवन को तराशती है

खोलकर बुनती है फिर

गढ़ती जाती है नये अक्स।

अतीत के पत्थर पर

खुदा है एक महाकाव्य

अंध समय के थपेड़े

गढ़ते है नये बर्तन 

किसी कुम्भकार के जैसे।

उदास किस्सें कसमकश

निर्धूम ज्वाला हृदय में

सुलगती एक चिंगारी से

आकार लेते है दुःख 

समय पाकर हर बार।

चला गया वो एक दौर था!

आँसुओं की मूक भाषा

पीड़ा गाती अपना राग

स्वच्छंद काल-व्याली 

डस जाती आशाओं को

निकल कहाँ पाती थी

व्यथा की वो सिसकियाँ

चला गया वो एक दौर था।

 ज्ञानीचोर

मु.पो. रघुनाथगढ़,सीकर राज.

मो. 9001321438