टांगे सलामत, हाथ मजबूत, कोरोना में परीक्षा पास । फिर भी निठल्ले, निकम्में, घर में बैठकर रोटियां तोड़ रहे हों, तो लाजमी है, सरकार को आपके द्वार आना ही पड़ेगा। सरकार उनके पास जाती है, जो वोट के थोक व्यापारी होते हैं। सरकार उनके दरवाजे पर खड़ी होकर दुम हिलाती है।सरकार उसे कहते हैं, जिसके पास कार हो। सरकार किसान नहीं है, जो बैलगाड़ी में बैठकर चल दे। एक बैल मर जाए तो, खुद जुुत जाए। ना ही भेड़ बकरी हैं, जिधर हांक दिया उधर चल दी। मर्जी की मालिक है।
*कागज पर, कागज के साथ और कागज की खानापूर्ति के लिए चलती है।*
वो सरकार किस काम की जो हर ऐरे गेरे के साथ चल दे या उनके इशारे पर नाचने लगे। सरकार भी जब नाचती है, जब नचाने की कूबत हो या मझधार में डूबने की शंका बन जाए। सरकार नाले में तो डूब नहीं सकती? सरकार की टांगे कानून के लंबे हाथों की तरह होती है। इसलिए नाले में डूब नहीं सकती। हाथ चाहे कितने ही लम्बे क्यों न हों, वे केवल गरीब के गले तक ही पहुंच पाते हैं। अमीर आदमी के पास तो घुटनों के बल जाती है। सरकार जब घुटनों पर होती है तो हाथ सलाम की मुद्रा में आ जाता है।सरकार, कार में आए या डोली में, दोनों स्थिति में खतरे के निशान से ऊपर होती है। सरकार पहली बार नहीं आ रही है। पहले भी कई बार आ चुकी है। इस बार साथ में सौगात ला रही है। हर बार की तरह दूसरे दिन नहीं आई। उसे विश्वास था, सभी उसके साथ हैं, इसीलिए वह चार साल के बाद आ रही है। *वोटर की ठोकर से सरकार के विश्वास में कमी महसूस होती है।* *जब सरकार की ठोकर पड़ती है तो वोटर को गलती का अहसास होता है।* सरकार की कार के जाते ही वोटर जमीन पर धड़ाम से गिर जाता है।
सरकार का जमीन से कोई जुड़ाव नहीं, इसीलिए सरकार कार से नीचे नहीं उतरना चाहती। उसने तो आलीशान शान-ओ-शौकत का आसमान देखा है, उड़ना सीखा है, उड़ते हुए शिकार करना सीखा है। जल, जमीन और जंगल से उसे क्या लेना देना। जमीन पर केवल शिकार करने आती है। पानी से मछली पकड़ने के लिए डुबकी लगाती है। जंगल काटने के लिए उतरती है और फिर आसमान में उ़ड़ने लगती है। सरकार किसी की भी हो आसमान में उड़ते रहना पसंद करती है।
सरकार आने की खबर से सड़क साफ, नालियों में नहाते बच्चे, सड़क किनारे सुन्दर-सुन्दर फूल खिले। बच्चे फूल होते हैं। गांव दुल्हन की तरह सज रहा है। सजी दुल्हन किसी सरकार से कम नहीं होती। नखरे सहे जाते हैं, कहे नहीं जाते। वो सरकार हों या दुल्हन। जो विरोध में स्वर उठाता है-काले कोट, खाकी कोट, सफेद कोट के सामने अफगानी अवाम की मुद्रा में आ जाता है। सरकार को सहमी निगाहों से देख सकते हैं। सरकार शेर होती है। प्रजातंत्र के मंच पर जनता मूूकदर्शक हो जाती है।
चलो मान लिया सरकार द्वार पर आ गई, तो क्या उम्मीद है, वह काम करेगी? काम करने वाली सरकार द्वार पर खडी नहीं होती। सरकार कुर्सी पर बैठने के लिए आती है। कुर्सी पर बैठकर काम करना पड़े तो, यह सरकार की तौहीन है। सरकारी आदेश कुर्सी से और अवाम सर्दी/गर्मी बरसात में खडीं-खड़ी केवल पालन की मुद्रा में। सरकार कुर्सी पर बैठे या कार में, उसे बैठना है। सरकार में सत्ता कपड़े की तरह बदलती है। लेकिन सरकार हमेशा कुर्सी पर। सरकार रंग नहीं बदलती, सत्ता गिरगिट होती है, रंग बदलती है और ढंग भी। न सरकार ईमानदार होती है, न सत्ता। ईमानदारी का हथौड़ा हमेशा जनता की खोपड़ी पर आर्डर-आर्डर के साथ बजता है।
सरकार जिन्न है। राज्य/केन्द्र/शहर/गांव में पाई जाती है। यह दिखाई नहीं देती, होती सब जगह है। इसके भय से जनता थर-थर कांपती है। कागज में आती है या साक्षात नेता/अधिकारी/बाबू के रूप में अवतरित होती है। सरकार साथ में होती है, लेकिन दिखाई फिर भी नहीं देती।सरकार वह शालीन होती है जो चुनाव के बाद भी द्वार पर खड़ी हो।
सरकार जिन्न होती है, इसीलिए विलुप्त हो गयीं हैं। जब सरकार घर-घर आने की बात कहने लगे, तो मान लो सरकार में बैठी सत्ता के बुरे दिन चल रहे हैं और चुनाव मौत की तरह मंडरा रहा है।
सुनील जैन राही
M-9810 960 285
पालम गांव- 110045