सबकी सुनती हूँ मैं, अपनी कब सुनूँ, सबका काम करती हूँ मैं,
अपना कब करूँ ।
दूसरे के राहों में फूल बिछाते बिछाते अपने राहों के काँटे कब
चुनूँ ,।
सबको अच्छा बनाते-बनाते मैं बुरी
क्यों बनूँ ।
अपनें अंदर हो रहें द्वंद्व प्रतिद्वंद्व को मैं पराजित कैसे करूँ ।
नारी की सुन्दर छवि बनूँ , या
फूलों से गूंथा हार बनूँ ।
सोच रहीं हूँ नारी जागृति की शक्ति
बनूँ एक ऐसा मैं मिशाल बनूँ ।
कर ना सके कोई ऐसा मैं कार्य करूँ
असमंजस में फंसे इस मन को कैसे
मैं स्वीकार करूँ ।
मन की वेदनाओं को प्रकट करूँ या
या दिमाग में चल रहें सवालों का जवाब ढूँढू ।
कोई बतायें मैं क्या करूँ ,
सबकी सुनती हूँ मैं,
अपनी कब सुनूँ ।।
निर्मला सिन्हा ग्राम जामरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़