रातें उदास हैं

माँ बाबा की मैं गुड़िया रानी,

दादा की राजदुलारी।

छोड़ चली मायके का अँगना,

बिटिया हुई पराई।।

छोड़ चली उस आँगन में,

अपने बचपन की निशानी।

भूल नहीं पायेगा कोई,

मेरे बचपन की कहानी।

24साल तक हुई थी कभी ना,

एक पल आँखों से ओझल।

बेटी ब्याह कर हुई पराई,

भारी बहुत था मेरा वो पल।

याद तुम्हारी आती बिटिया,

मुझसे माँ मेरी कहती है।

*रातें उदास हैं* दिन भी रूठा,

जाने कैसे जुदाई सहती है।

धर्म निभाकर अपना उसने,

दिल का टुकड़ा दान किया।

याद में अपनी गुड़िया की,

उसने अश्रु पान किया।

धन्य हैं होते माता पिता,

सत्य समर्पण की मूरत है।

निर्गुण ब्रह्म को देखा किसने,

ये सगुण ब्रह्म की सूरत है।

वचन देती हूँ तुमको बाबुल ,

 मान न झुकने दूँगी तेरा।

तूने जैसा सोचा है मेरे लिए,

करनी होगी वैसा ही मेरा।

दो कुल दो घर की मर्यादा,

अपना धर्म निभाऊँगी।

इंतजार मेरा करना बाबा,

मैं तुमसे मिलने आऊँगी।

व्यर्थ ना जाने दूँगी मैं,

तुम्हारा त्याग और समर्पण।

स्वीकारो मेरा प्रणाम मेरे भगवन,

करती श्रद्धा शब्द सुमन अर्पण।।

रीता प्रधान

रायगढ़ छत्तीसगढ़