चिड़िया उदास

लघुकथा 

      सुबह-सुबह एक चिड़िया चीं चीं  करने की बजाए  उदास बैठी थी।एक  दूसरी चिड़िया उसके पास आई और बोली-  क्या तुम्हारी तबीयत खराब है ?सामने दाने बिखरे हुए हैं और तुम चुग नहीं रही हो। पहले वाली बोली- तबीयत खराब नहीं है, मन उदास है ।भूख कहीं भाग गई है।

   क्यों, क्या हुआ ? तुम्हारा अंडा या बच्चा…   नहीं नहीं ,नीचे झांक कर देखो,  इस झोपड़ी में रहने वाला पूरा परिवार उदास है ।

  हुआ क्या है ? 

  कल शाम को मैंने देखा वह मां अपने डिब्बे और थैले संभाल रही थी। सब खाली मिल रहे थे । एक में एक मुट्ठी अनाज निकला। मां ने कुछ देर उस मुट्ठी भर अनाज को देखा। फिर मेरी तरफ फेंक दिया। मैं कुछ दाने ही खा सकी क्योंकि पेट भरा हुआ था और दिन भी छिप गया था ।बाद में मैंने देखा, आज उनका चूल्हा नहीं जला है। बाबू और मां बच्चे भी भूखे ही रात को सो गए थे। सोने से पहले कई देर तक बच्चे रोते रहे थे। बाबू ने मां को कहा-  बच्चों को चुप कराओ । उम्मीद है कल काम मिल जाएगा। खाना कल जरूर मिलेगा। मां बच्चों को तसल्ली देती रही। पर तसल्ली से उनके पेट में कुछ नहीं गया ।नींद ने ही भूख को भुलाया।      यह बात है। बता, हम इसमें क्या कर सकते हैं ।हम इंसान होते तो काम पाने में इसकी जरूर मदद करते ।बस उम्मीद ही  कर सकते हैं कि  इतने आदमियों में कोई इंसान इसे जरूर मिलेगा जो काम में पाने में मदद करेगा। चल उठ, बिखरे दाने चुगते हैं।

   पर पहले वाली चिड़िया उदास ही रही ।

गोविंद शर्मा ।