बचपन का आंगन ,बचपन की खेेल
छुक छुक चलती वो ऐक्सप्रेस रेल I
गिल्ली-डंडा फिड्डू का मनमोहक खेल ,
मिट्टी के घराट , कूदने वाली बेल I
सब धर्मों में अनूठा था मेल ,
खुशबूदार होता सरसों – तिलों का तेल।
दादी-नानी सुनाती परियों की कहानी ,
संयुक्त परिवार – सभ्य समाज में पलती जवानी ,
दूर से आती वो तड़के की खुश्बू ,
अनाज में होती पौष्टिकता अनमोल ,
घर-घर बहती दूध-घी की नदियाँ ,
सोने की चिड़िया कहते बीती कईं सदियाँ ,
वट – पीपल टयाले पर सजती चौपाल ,
तीज – त्योहार , उत्सवों , मेलों पर बेमिसाल हंसी -प्यार ,
गंगी, मोहणा , बांठडा सुनाते लोक गायक सयाने ,
नई फसल स्वागत बेला बांटते ग्वाल वालों को दाने ,
परमपिता वो बचपन लौटा दो ,
आर्यावर्त को सोने की चिड़िया बना दो।
रवि कुमार सँख्यान , मैहरी काथला, बिलासपुर हि .प्र .सचल वार्ता9817404571