कभी तो ए सुख़नवर लिखो
*एक किताब बेटी पर* भी
लिखो उसमें स्नेह के छंद
जिसमें न उस पर हो
कोई भी प्रतिबन्ध
सोन चिरैया-सी उड़ने दो
नील गगन में
ऊंची परवाज़ उसे भरने दो
ताले लबों पर मत जड़ने दो
होने दो पूरे उसके सभी अरमान
दिल से दो उसको सम्मान
बेटी है तो सलामत
है सारा संसार
माँ, बहन, भाभी, प्रेयसी
बहू अनेक रूप
बेटी जिसके भाग में
वो समान है भूप बेटी के
है सब कुछ निस्सार
बेटी पर करो मानव
निज सर्वस्व निसार
नीलोफ़र
देहरादून, उत्तराखंड