निडर शब्द

मिल जाए जो कलम का वात्सल्य।

और मिल जाए जो कागज की गोद।

भावों की धरती पर चले जब कलम।

बूंदों से गिरते शब्द बहते अनवरत।

नहीं बना पाते सत्य से ये शब्द दूरी।

निडर शब्दों की नहीं कोई मजबूरी।

पल-पल दिल पर तेरे जो करते राज।

बहते शब्द बनकर जिंदगी का साज।

लिखते नहीं ये मदमदातें सुमन यौवन।

महकाते शब्द जिंदगी का हर उपवन।

कांटे सी चुभती बातें भी लिख जाते।

तो कलियों की दर्दीली दास्तां सुनाते।

सघन घनो में जब सत्य है छुप जाता।

निडर शब्द नैन से कहां वो बच पाता।

चाहे भी तो कलम पर ये कठिन होता।

अपने इन निडर शब्दों को रोक पाना।

शब्द गहन मौन जब तुम तोड़ते हो।

हृदय से पीड़ाओं का रुख मोड़ते हो।

बरसों की बेकली मिट है जाती।

टूटे दिलों को तुम कैसे जोड़ते हो।

शब्दों में निहित जीवन का गहन अर्थ।

बिन तुम्हारे तो जिंदगी हो जाती व्यर्थ।

कलमकार की तो होते तुम ही पूंजी।

तुमसे खेलना ही होती उसकी कुंजी।

वीनस जैन

शाहजहांपुर

उत्तर प्रदेश