कभी मेरी कहानी हो
मगर उनकी ज़ुबानी हो
कभी वो शादमानी हो
मेरी आंखों में पानी हो
बहुत ही नर्म लहजे में
कोई भी सच बयानी हो
हो भूरा रंग अम्बर का
धरा का रंग धानी हो
न हो राजा कहीं कोई
न कोई राजधानी हो
हो हर पल शे’र के जैसा
ग़ज़ल _सी ज़िन्दगानी हो
——-धर्मेन्द्र गुप्त ‘साहिल’
संपादक: समकालीन स्पंदन
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