अखाड़ा नहीं है

दिले आशियाँ है अखाड़ा नहीं है।

धड़कता सदा है नगाड़ा नहीं है।

सहारा तुम्हारा कभी ना मिला है,

मगर दर्द हमने उघाड़ा नहीं है ।

हमारे हृदय में भरी है दया ही,

अभी राक्षसों को उजाड़ा नहीं है।

सदा हृदय में देश की हो तरक्की,

कभी हमसफ़र को लताड़ा नहीं है ।

सुबह शाम उनको हमीं ने तराशा,

महज ये प्रगति का पहाड़ा नहीं है।

हमारे’ हितैषी ‘ सदा साँप बनते,

दिमाग हमने पर बिगाड़ा नहीं है ।

      प्रबोध मिश्र ‘ हितैषी ‘

    बड़वानी (म.प्र.)451551