हाथ पकड़………..

सच  पूछो  तो  लिस्ट  बहुत ही छोटी है 

इक  दूजे  से  नफ़रत  करने  वालों  की 

अब  भी  है  तादाद  हज़ारों  लाखों  में 

हाथ पकड़ कर साथ में चलने वालों की 

मंदिर मस्जिद एक तरफ़ रख कर सोचो 

सोच  रहे  हो जो उस से हट कर सोचो 

बेशक अपना धर्म  सभी  को  प्यारा  है 

कहीं  मुहम्मद  कहीं  राम  का  नारा है 

लेकिन इन  दोनों को ज़रुरत है तो बस 

प्रेम  की नदिया  पार  उतरने वालों की 

अब  भी  है  तादाद  हज़ारों  लाखों  में 

हाथ पकड़………..

गुलशन से काँटो के वनो तक  आ पहुँचे 

मत भेदों  से  मन  भेदों  तक  आ पहुँचे 

ग्रंथ पढ़े सब फिर भी पढ़ कर क्या जाना

हमे  दिखाया  जो  हमने  सच  वो माना 

सूरत बर्फ़  के  जैसी  साफ़  है देखो तो

आग  हमारे  दिल  में  भरने  वालों  की 

अब  भी  है तादाद  हज़ारों   लाखों  में 

हाथ पकड़ …………….

सदियों  से  हम  इक  दूजे  के साथी हैं

आप  दिया  हैं  गर  तो हम भी बाती हैं

अगर  दरारें  बढ़  जाएं  तो  क्या  होगा 

सच  पूछो  तो  अपना  ही  घाटा  होगा

घर की छत कमज़ोर सी पड़ने लगती है

अपने  ही  आँगन  में  लड़ने  वालों की 

अब  भी  है  तादाद  हज़ारों  लाखों  में

हाथ पकड़ ……………

                        ‌‌ तबस्सुम अश्क  

                        कवित्री उज्जैन