ये लड़कियाँ

हँसती मुस्कुराती इठलाती रूठती-मनाती ये लड़कियाँ,

कभी डरती कभी काँपती तो कभी शर्म से पलकें झुकाती ये लड़कियाँ।

माँ बहू बेटी बहन पत्नी या हो प्रेमिका,

एक ही तन से कई किरदार निभाती ये लड़कियाँ।।

ऐसे न चलो ऐसे न बोलो ऐसे न हँसो,

देकर ताने घर मे क़ैद कर दी जाती हैं ये लड़कियाँ।

कहीं बरसात के पानी में कागज़ की नाव,

तो कहीं आसमान में फाईटर प्लेन उड़ाती ये लड़कियाँ।।

आजाद उड़ने का ख़्वाब सँजोकर,

ज़िम्मेदारियों के बन्धनों में बँध जातीं ये लड़कियाँ।

गिद्ध जैसी नजरों से घूरने वालों कभी देखना इनकी असहज आंखों में,

कितना कुछ बिना बोले ही कह जातीं ये लड़कियाँ।।

डालना चाहता है बेड़ियाँ ये कुंठित समाज,

लेकिन उसी समाज को ठेंगा दिखा आगे बढ़ जाती हैं लड़कियाँ।

कभी जिद पर अड़े तो बन जाती है बच्ची,

कभी बुजुर्गों सा समझाती हैं ये लड़कियाँ।।

सीख लेती है अपने नाज़ुक कंधों पर जिम्मेदारियों का बोझ उठाना,

फिर क्यों पैदा होते ही बोझ समझी जाती हैं ये लड़कियाँ।

मत कुचलो इनके सपनो को दो हौसला इनको आगे बढ़ने का,

सागर की गहराई से लेकर आसमान की ऊंचाइयाँ तक नाप जाती हैं ये लड़कियाँ।।

प्राति बाजपेई,रायबरेली (उ. प्र.)