कितनी कितनी हवाओं को
चीरने की कोशिश की
हवाओं ने हर बार मेरे स्वर को
मुझे ही लौटा दिया
हवाएँँ मुझे
चीरती रहीं
मैंने चिड़िया से कहा
अपने उड़ते पंखों के साथ
मेरे गीतों को ले जाओ
उस पहाड़ में एक छेद करदो
एक झरना वहाँँ पर फूट पड़ेगा
लेकिन वह चिड़िया
एक मीठे जाल में उलझ गयी
मेरा गीत एक तरफ
नि:शब्द पड़ा रह गया
मैं एक भयावनी गुफा के
अंधेरे में घुस गया
चलता रहा टटोलते-टटोलते
घुटन और अजीब-अजीब-सी
आवाजों का सामना करते
कहीं-न-कहीं आलोक
झरता हुआ दिखाई ही देगा
पर , यह क्या हुआ
कितने चमगादड़ों की फ़ौज
फड़फड़ाती हुई अपने पंखों को
मेरे रोम-रोम को नोचने लगी
मैं धम्म से वहीं बैठ गया
एक सुगंध का झोंका
लेकिन मेरे कानों में
कुछ बुदबुदा जाता है
लाशों के लबों पर भी
ज़िंदगी मुस्कुराती प्रतीत होती है
बाहर और भीतर का सन्नाटा
प्राणों में कुलबुलाने लगता है
और एक बहती नदी की आवाज़
मुझे पुकारने लगती है
मैं खड़ा हो जाता हूँ ।
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-दुर्गाप्रसाद झाला .
मो. 9407381651 .