धैर्य और प्रतीक्षा

धैर्य  र्और प्रयास ही से ही,

मिलती है सदा हमें सफलता।

जब तक न हो मन में धैर्य,

तब प्रयास में भी हो अपूर्णता।।

प्रयास रूप है कर्म हमारे,

पर फल होता है सदा अनिश्चित।

और कभी जब धैर्य न हो ,

तब हम व्यथित हो जाते किंचित।

कर्म भाव हैं वश में हमारे,पर

फल का स्वामी है कोई अन्य।

अतः फल प्राप्ति के बिलम्ब से,

मन हो जाता अस्थिर अनमन्य।।

जब मन में आजाये भाव धैर्य का,

तब फल की हम कर लें प्रतीक्षा।

कर्म करो और फल को भूलो,

यही कहलाये धैर्य समीक्षा।।

अतः धैर्य को करके हम धारण ,

जब कार्यों का करें निष्पादन।

तब न हो मन में कोई पीड़ा,

औ प्रयास का भी हो सम्पादन।।

ममता श्रवण 

अग्रवाल

सतना 8319987003