राख हुआ है

यह माटी का सुंदर तन

उजला रूप है,काला मन

सदा सुशोभित बाह्य जगत में

अंतस धूमिल,मलिन क्षण-क्षण

सुख के साथी सदा सिखाते

दुख में केवल एकल जीवन

रहे प्रयास अति पाक साफ पर

फिर भी तो सब खाक हुआ है

जो था खड़ा वो राख हुआ है।

शीश महल के शीश शीर्ष पर

शीश शमा इठलाती जगमग

हृदय मध्य पर स्याह रात है

परछाई भी नहीं साथ है

समय सलोना सर से सरका

दर्पण सा सम साथी मेरा

टुकड़े-टुकड़े काँच हुआ है

देखो तो तब खाक हुआ है

जो था खड़ा वो राख हुआ है।

प्रेम की कुसुमित बगिया महकी

ऋतुओं संग कोयलिया चहकी

रिमझिम सावन के झूलों पर

पिया के संग पैजनिया छनकी

सर्द शीत के लगे थपेड़े

कुछ कुम्हलाया,कुछ मुरझाया

पतझर की पहली पीड़ा से

तिनका-तिनका खाक हुआ है

जो था खड़ा वो राख हुआ है।

महिमा तिवारी,प्रा0वि0-पोखर भीन्डा 

नवीन,रामपुर कारखाना -देवरिया,उ0प्र0