विरह नीर इन नयनों से,
बहकर कुछ चिन्ह बनाता|
ये अनंग कोर पलकों से,
घुँघची के पुष्प सजाता||
ये सजल नयन कुछ कहते,
बीती विरह की बातें|
ये घात अश्रु सीने में ,
छलना बन छले अंतस के||
गहन वेदना हृदय की,
बहती नद नीर अनल सी|
अधरों पर काम लालिमा,
काँपी स्मृति प्रियतम की||
चातक सी चकित निगाहे,
बेसुध अंतस की आहें |
ये शब्द विहीन विरह रस,
बहता अँखियन की राहें ||
ये मादक मोहमयी पलकें,
पिय प्रणय सुधा बिन फीकी|
पीड़ा ये गहन अनल सी,
जलती विरहाग्नि धीमी||
मैं विरह अश्रु को जीती,
पिय प्रणय सुधा रस पीती|
आलोकित अधर मुस्काती,
हर शब्द हृदय में सीती ||
डॉ. निशा पारीक जयपुर राजस्थान