‘मेरी आँखें भर आईं’

तुझे एक  नज़र भर देखने से क्यूँ कतराई, 

इसी भूल पर है आज मेरी आँखें भर आई।

दीवानी है  बड़ी  दुनिया  तेरी हर अदा की, 

तूने जब मुस्कुराके  देखा तो मैं क्यूँ शर्माई।

मैं धरा की धूल सी कहाँ काबिल तुम्हारी, 

तू आसमां का चाँद है ये सोचकर घबराई।

क्या बताऊँ  पशेमां हूँ अपनी नादानी पर,

मांगा जब मुझको तूने मुझसे क्यूँ लज्जाई।

तूने खुदा मुझे माना क्यूँ अन्जानी रही मैं, 

उसी एक बात पर मुझसे है मेरी रुसवाई। 

क्या बताऊँ दिल तेरा कितना है दिवाना,

आहें भरता है जब जब बहती है पुरवाई। 

आजा फिर से  एक बार  इकरार मुझे है,

थाम ले मुझको बन जा तू मेरा रहनुमाई।

जाऊँगी नहीं अब दूर  तुमसे जुड़ी रहूँगी,

मनुहार पे  मान जा  अब तो ओ हरजाई। 

वफ़ा पर ऐतबार करके गुस्सा थूँक भी दो,

तोडूँगी दिल नहीं  तेरा लो ये कसम उठाई।

भावना ठाकर ‘भावु’ (बेंगलूरु, कर्नाटक)