पनघट घट लेकर चली,
कृष्ण मिले मुझे राह।
सिर की मटकी गिर गई,
मैं बेसुध बेहाल।।
कान्ह कान्ह ही रट रही,
नाम काम की बात।
पी से पि का ये मिलन,
जल में जल अविराम।।
स्वप्न सुनहरा संग में,
संग चले मधुमास।
पनघट घट व्याकुल पड़ा,
व्याकुल मन की बात।।
नयन रुके निस्तब्ध से,
एक टक देखे गात।
चन्द्र मुखी ये चन्द्र कला,
स्वयं कृष्ण थे साथ।।
खो कर हर इक स्वप्न में,
स्वप्न रंगी रंग लाल।
एक किशन का रंग चढ़ा,
दूजी यह प्रीत अपार।।
डाॅ•निशा पारीक जयपुर राजस्थान