ज़मीन की जो मिट्टी आसमान बने,
पंख फैला इन परिंदे को उड़ने दो।
किसी जुगनू ने आशियां बनाया है,
गुलशन में बुलबुल को चहकने दो।
सफर याद रखेंगे तलाश ने वाले,
पलछिन पे दास्तान लिखने दो ।
सरखुशी का एक लम्हा चाहिए ,
खुद को खुद से मिलने तो दो ।
चले उस तरफ जिसकी थी जुस्तजू,
सफर को मुसाफ़िर नवाज होने दो।
वो लुफ्त उठाएगा मसाफत का यारा,
खुद में खुद का सफर जरा होने दो।
~ बिजल जगड
मुंबई घाटकोपर