(1)
स्वच्छ श्वास
मनोरम प्रकृति
खुला आकाश
(2)
सभी हों मुग्ध
प्रकृति मनोरम
बनें प्रबुद्ध
(3)
देखे जो तुझे
सर्वत्र विद्यमान
उसे ही ज्ञान
(4)
सृष्टि उसी की
पत्ता-पत्ता उसी का
सब उसी का
(5)
सारी प्रकृति
दिखते हस्ताक्षर
तेरे ईश्वर
(6)
होना न होना
नहीं कुछ भी तेरा
उसी का डेरा
(7)
लगा तू ध्यान
मिलेंगे भगवान
अरे नादान
(8)
वो प्रियतम
सत्यं शिवं सुन्दरम्
अनन्यतम
(9)
देता है सब
वो सबका मालिक
वो एक रब
(10)
क्या लिखूँ प्रभु
तू जग पीड़ा हरे
शब्दों से परे
(11)
तन औ’ मन
पुकारें हर क्षण
दे दो दर्शन
(12)
न कोई चाह
प्रगट हो हे कृष्ण
मैं देखूँ राह
(13)
मन बेचैन
जागे सारी रतियाँ
सूनी अँखियाँ
(14)
मेरे मालिक
यही है अरदास
बुझा दे प्यास
(15)
प्रेम स्वरूप
रूप अनन्यतम
कृष्णं शरणम्
डा. सारिका मुकेश
एसोसिएट प्रोफ़ेसरअंग्रेजी विभाग
वी. आई. टी.वेल्लौर-632 014
(तमिलनाडू)मोबाइल: 81241 63491