झाबुआ भाद्रपद कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि के पावन दिवस बुधवार को जिले में गौवत्स द्वादशी के रूप में मनाई गई। इस धार्मिक उत्सव पर जिले के नगरीय और ग्रामीण इलाकों में जगह जगह बछड़े सहित गौदेवी की पूजा कर उन्हें गुड़ खिलाया गया। आदिवासी अंचलों में भी कहीं कहीं गाय बछड़े की संयुक्त रूप से पूजा करने के समाचार प्राप्त हुए हैं। गौपालकों द्वारा गायों का श्रृंगार भी किया गया।
जिले के विभिन्न हिस्सों में गौवत्स द्वादशी के अवसर पर महिलाओं द्वारा गाय एवं बछड़े का संयुक्त रूप से पूजन कर गुड़ खिलाया गया। हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन महिलाओं को व्रत रखते हुए दूध, दहीं और गेहूं, चांवल खाने का निषेध बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन बाजरे की रोटी खाने का विधान बताया गया है, किन्तु झाबुआ जिले का मुख्य खाद्यान्न मक्का है अतः महिलाओं द्वारा मक्का की रोटी का भोजन किया गया। इस मौके पर गौपालकों ने अपनी गायों को श्रृंगारित कर विधि पूर्वक उनका पूजन किया। जबकि महिलाओं ने गाय बछड़े का पूजन कर अपने पुत्र के लिए शुभ मंगल कामनाएं की।
श्रीमद्भागवत कथा वाचक एवं विद्वान कर्मकांडी थांदला निवासी पंडित श्री रंग आचार्य, बामनिया निवासी विद्वान कर्मकांडी पंडित भगवती प्रसाद शर्मा एवं थांदला निवासी पंडित सुरेन्द्र आचार्य ने अरण्यपथ न्यूज नेटवर्क एवं संवाद एजेंसी ईएमएस को इस तिथि के संबंध में विशेष महत्व प्रतिपादित करते हुए बताया कि गौवत्स द्वादशी तिथि पर बछड़े सहित गौ माता का विधिपूर्वक पूजन कर और उन्हें गुड़ खिलाकर तथा ओम् सुरभ्यै नमः एवं ओम् सुरभिनन्दनायै नमः मंत्रों से गाय बछड़े की परिक्रमा करना शुभमंगल प्रदायक होता है। ऐसा भी कहा गया है कि उक्त गौमंत्रका गौशाला अथवा गायों के रहने के स्थान पर विधि विधान पूर्वक अनुष्ठान करना से से इच्छित मनोकामना पूर्ण होती हैं। विद्वज्जनों के अनुसार गाय को पशु समझना अज्ञान है। वस्तुत: गाय देवी है। यह सम्पूर्ण प्राणियों को पोषण प्रदान करने वाली माता है। गाय के ऋण से कोई उऋण नहीं हो सकता। हम गाय को यदि अपने घरों में न पाल सकें, तो प्रतिदिन एक रोटी गाय को अवश्य दें। हम सबका यह प्रयत्न हो कि कोई भी गौमाता हमारे द्वार से निराश होकर न जाए। इसी में गौ पूजा की सार्थकता निहित है।