जरूरत पड़ी तो हर दिन कार्यस्थगन कर चर्चा कराने से संकोच नहीं करूंगा: धनखड़

नई दिल्ली । राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को राज्यसभा के सदस्यों को आश्वस्त किया कि स्थिति की गंभीरता के अनुरूप यदि जरूरत पड़ी तो वह हर दिन नियम 267 के तहत कार्यस्थगन के नोटिस स्वीकार कर सदन में चर्चा कराने से भी संकोच नहीं करेंगे। इसके साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनके पूरे कार्यकाल के दौरान यदि ऐसा कोई नोटिस सही प्रारूप में नहीं मिला तो वह एक भी बार उसे स्वीकार नहीं करेंगे। राज्यसभा में विपक्षी सदस्यों द्वारा नियम 267 के तहत दिये गये विभिन्न नोटिस को आसन द्वारा लगातार खारिज किए जाने पर सदस्यों की आपत्ति के बाद सभापति धनखड़ ने शून्यकाल के दौरान यह बात कही।
विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की एक टिप्पणी को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच हुई तीखी नोकझोंक के बाद जैसे ही सदन में व्यवस्था बहाल हुई और कार्यवाही आगे बढ़ी सभापति धनखड़ ने कहा कि आज उन्हें नियम 267 के तहत कार्यस्थगन कर चर्चा कराने के लिए छह नोटिस मिले हैं। सभापति ने कहा कि इनमें से एक नोटिस समाजवादी पार्टी के प्रोफेसर रामगोपाल यादव का है जिसे देखकर लगा कि उन्होंने इसे सौंपने से पहले इस पर होमवर्क किया है। धनखड़ ने कि इस नोटिस में उन्होंने दो गलतियां की है जिसकी वजह से उनका नोटिस अस्वीकार कर दिया गया है। धनखड़ ने बताया कि यादव के नोटिस में उल्लेख किया गया है कि यद्यपि सदन की नियमावली में महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा कराए जाने के संदर्भ में नियम 176 व 180 उपलब्ध हैं।।।पर इन नियमों के तहत संबंधित मंत्री की सहमति की आवश्यकता है।
धनखड़ ने कहा मंत्री की सहमति की आवश्यकता नहीं है। यह सदन किसी सदस्य या मंत्री की सहमति से कोई भी कामकाज नहीं करता है। अनुमति मेरी होती है। इसके अलावा कोई भी नोटिस ऐसा नहीं है जो नियमो के अनुरूप है। बाकी सभी नोटिस अस्वीकार करते हुए उन्होंने सदस्यों से कहा कि वे नियमों का पालन करें और उसके अनुरूप मुद्दे उठाएं। तृणमूल कांग्रेस के सदस्य डेरेक ओब्रायन ने इस पर आपत्ति जताते हुए व्यवस्था का प्रश्न उठाया। उन्होंने कहा कि वह सभापति के शुक्रगुजार है कि वह नियम 267 को चर्चा के केंद्र में लेकर आए हैं। उन्होंने सदन की परिपाटियों का हवाला देते हुए कहा कि 2016 से 2022 तक जब तक एम। वेंकैया नायडू सभापति रहे उन्होंने 267 के तहत एक भी नोटिस नहीं स्वीकार किया।
डेरेक ने कहा लेकिन मैं आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं कि शंकर दयाल शर्मा ने 1990 से 1992 के बीच नियम 267 के तहत चार नोटिस स्वीकार किए। भैरो सिंह शेखावत ने नियम 267 के तीन नोटिस स्वीकार किए और हामिद अंसारी ने चार नोटिस स्वीकार किए। उन्होंने कहा आपके पूर्ववर्तियों ने इस नियम के तहत नोटिस स्वीकार किए हैं। मैं आपसे सहमत हूं कि हर सप्ताह या महीना इस नियम के तहत नोटिस स्वीकार नहीं किए जा सकते लेकिन 267 एक जीवंत नियम है। जिसे साल में दो या तीन बार स्वीकार किया जा सकता है।
इस पर सभापति ने कहा क्विज मास्टर ने कुछ आंकड़े रखे हैं। सभापति की इस टिप्पणी पर डेरेक ने आपत्ति जताते हुए कहा कि वह तृणमूल कांग्रेस संसदीय दल के नेता हैं। उन्होंने कहा क्विज मास्टर के रूप में मैं 2011 में सेवानिवृत्त हो चुका हूं। मैं आज जो हूं उसके अनुरूप मुझसे व्यवहार कीजिए। इसके बाद धनखड़ ने कहा कि उन्होंने तो अभी अपने कार्यकाल की शुरुआत की है। उन्होंने कहा मेरे पास स्थिति की गंभीरता को ध्यान में रखने के लिए पर्याप्त समय है और यदि ऐसा अवसर आता है कि प्रतिदिन नियम 267 को स्वीकार करना पड़े तो आप मुझ पर भरोसा कर सकते हैं मैं इसे लागू करने में संकोच नहीं करूंगा। उन्होंने कहा और अगर मेरे पूरे कार्यकाल के दौरान एक बार भी इसे लागू करने का कोई अवसर नहीं आया तो मैं नहीं करूंगा। इसकी (नोटिस) जांच गुण-दोष के आधार पर की जाएगी।
उल्लेखनीय है कि विपक्षी सदस्य शीतकालीन सत्र की शुरुआत से ही हर दिन नियम 267 के तहत विभिन्न मुद्दों पर चर्चा कराने की मांग को लेकर प्रति दिन पांच से नौ नोटिस दे रहे हैं लेकिन आसन की ओर से नियमों का हवाला देकर उनके नोटिस अस्वीकार कर दिए गए हैं। नेता प्रतिपक्ष खड़गे ने भी कल सदन में इस मुद्दे को उठाते हुए कहा था कि आसन की ओर से उनके कार्य स्थगन प्रस्ताव को नियमों के तहत नहीं होने का कारण बताते हुए खारिज किए जाने से मीडिया में यह संदेश जा रहा है कि विपक्ष को सदन के नियमों के बारे में जानकारी नहीं है। उन्होंने दावा किया कि ऐसे सभी नोटिस में नियमों का समुचित हवाला दिया जाता है।