बकाया बहुत हैं मेरे सपने तुमपे,तुम्हें बेहिसाब होना पड़ेगा ,
रहोगे कब तक यूं दायरों में, अब तुम्हें आसमां होना पड़ेगा !!
हर्फ-हर्फ लिखते रहे “क़िस्से”, जिसके हम अपनी सांसों पर ,
सब समेट लो संग अपने कि, अब तुम्हें किताब होना पड़ेगा !!
सुनो, सरेआम शर्मसार न कर दें कहीं वो लोग, “हमारे खत”,
निकालो एक लिफाफा अभी कि अब इन्हें राज होना पड़ेगा !!
क्यों लौट आतीं हैं बार-बार, मुझ तक मेरी ही आवाजें सभी ,
पुकारूं मैं यूं ही कब तलक..तुम्हें अब बेशुमार होना पड़ेगा !!
ज़रा, हाथ रखो दिल पे अपने..और, सुनों मेरे मन की बात ,
क्या करूं..मेरे “सवाल” हैं इतने, तुम्हें लाजवाब होना पड़ेगा !!
“न चाहकर” भी रूठ जाती हूं क्यों तुमसे ही, यूं मैं बार-बार ,
खफा होके भी खफा न रहूं, तुझे “वो किरदार” होना पड़ेगा !!
सुन “मनसी”, यूं तो लंबी बहुत है ये रात उसके “इंतज़ार” की ,
शमा जलेगी ये कब तक कि अब तुम्हें आफताब होना पड़ेगा !!
नमिता गुप्ता “मनसी”
मेरठ, उत्तर प्रदेश