मुंबई । महाराष्ट्र के स्कूलों में मनुस्मृति पढ़ाई जाने की योजना पर सरकार को यू-टर्न लेना पड़ा है। इससे पहले सरकार की योजना थी कि राज्य के सभी स्कूलों में मनुस्मृति को पढ़ाया जाए। ये सब हो पाता इससे पहले राज्य में विरोध शुरु गया। इस बीच महाराष्ट्र सरकार की तरफ से सफाई आई है कि वह महाराष्ट्र राज्य पाठ्यक्रम ढांचे की तरफ से दी गई सारी सिफारिशों को नहीं मानेगी। राज्य के शिक्षा मंत्री दीपक केसरकर ने कहा कि ड्राफ्ट को सरकार की मंजूरी के बिना ही सार्वजनिक करके बड़ी गलती की गई है। इसी वजह से भ्रम की स्थित बनी हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक केसरकर ने कहा कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उचित प्रक्रिया के बिना ही ड्राफ्ट को सार्वजनिक कर दिया गया। मुंबई में पत्रकारों से बात करते हुए केसरकर ने कहा कि 11 और 12 में अंग्रेजी को अनिवार्य भाषा से बाहर इसलिए रखा गया है क्योंकि आगे की तकनीकी शिक्षा को भी आंचलिक भाषा में लाने का प्रयास किया जा रहा है। बता दें कि पिछले सप्ताह ही स्टेट काउंसिल ऑफ एजुकेशन रिसर्च ऐंड ट्रेनिंग ने महाराष्ट्र स्टेट कैरिकुलमम फ्रेमवर्क पेश किया था इसमें स्कूली शिक्षा में भारतीय ज्ञान को लाने की वकालत की गई थी। स्कूली किताबों में भगवद्गीता को भी शामिल करने का ड्राफ्ट तैयार किया गया था।
केसरकर ने मराठी को अनिवार्य भाषा से बाहर करने पर भी खेद जताया। उनके बयान के बाद एससीईआरटी ने बयान जारी किया और कहा कि कक्षा 1 से 10 तक मराठी और अंग्रेजी भाषा, दोनों ही अनिवार्य होंगी। कक्षा 6 से संस्कृत समेत भारतीय और विदेशी भाषाओं का विकल्प मौजूद रहेगा। इसके अलावा 11वीं और 12वीं में दो भाषाएं सीखना जरूरी होगा जिसमें से एक भारतीय और दूसरी विदेशी होनी चाहिए। इसके अलावा नैतिक शिक्षा का भी अध्याय जोड़ने की शिफारिश की गई थी। हालांकि मनुस्मृति की पंक्तियों को शामिल करने को लेकर बवाल खड़ा हो गया। इस फैसले को दलित और ओबीसी विरोधी बताया गया। केसरकर ने सफाई देते हुए कहा, सरकार ने इसकी मंजूरी नहीं दी थी लेकिन ड्राफ्ट पहले ही सार्वजनिक हो गया। सरकार इस ड्राफ्ट के साथ आगे नहीं बढ़ने जा रही है।