नई दिल्ली । रूस और यूक्रेन जंग के बीच प्रधानमंत्री मोदी 46 दिनों के भीतर दोनों देशों का दौरा कर चुके हैं। पीएम मोदी को मकसद साफ था कि युद्ध की विभीषिका के बीच शांति का संदेश देना। जब राष्ट्रपति जेलेंस्की कहते हैं कि पुतिन की तुलना में पीएम मोदी ज्यादा शांति चाहते हैं, तब इसकी गंभीरता का आकलन करना जरूरी हो जाता है। भारत दोनों देशों के बीच पीसमेकर की भूमिका निभाने के लिए तैयार है।
इस बात को संयोग कहे या कुछ और लेकिन पीएम मोदी के यूक्रेन पहुंचने से दो दिन पहले ही चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग ने रूस का रुख किया था, जहां उन्होंने बेहद गर्मजोशी से राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात की। रूस की ओर चीन का झुकाव किसी से छिपा नहीं है। लेकिन इसके बावजूद वह खुद को इस युद्ध में निष्पक्ष देश के तौर पर पेश करने की कोशिश करता रहा है। लेकिन भारत की लगातार मजबूत हो रही ग्लोबल छवि से चीन चिढ़ा हुआ है। युद्ध के समय में भारत को दुनिया के कई बड़े देश संभावित पीसमेकर के तौर पर देख रहे हैं। चीन को यह रास नहीं आ रहा। वह वैश्विक स्तर पर भारत की लगातार मजबूत होती छवि से असहज महसूस कर रहा है। पीएम मोदी के यूक्रेन दौरे से चीन इस कदर चिढ़ा था कि अपने सरकारी अखबार में संभावित पीसमेकर के तौर पर भारत की भूमिका को सिरे से नकारा गया है। अखबार में कहा गया कि पीएम मोदी ने दोनों युद्धग्रस्त देशों के बीच की खाई को खत्म करने की उत्सुकता दिखाई है। लेकिन भारत के पास ऐसा करने की क्षमता ही नहीं है। भारतीय प्रधानमंत्री का यह कदम केवल अपने अस्तित्व को वैश्विक स्तर पर दिखाने की कोशिश भर है। भारत दोनों देशों के बीच शांति बनने में कोई भूमिका नहीं निभा सकता है। चीन की मंशा वैश्विक स्तर पर अपना वर्चस्व कायम करने की है। जानकार मानते हैं कि 2023 में चीन ने ईरान-सऊदी अरब डील में अहम भूमिका निभाई थी। चीन जानता है कि रूस और यूक्रेन युद्ध के बीच पीसमेकर की भूमिका निभाकर वैश्विक स्तर पर उसकी अहमियत बढ़ सकती है।