नई दिल्ली । रेल यात्रा करने वाले यात्रियों के लिए राहत भरी खबर है। राहत इसलिए कि यदि उनका सामान चोरी होता है तो उसकी जिम्मेदारी रेलवे की होगी और यात्री को 4 लाख का मुआवजा भी मिलेगा। एनसीडीआरसी यानी राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने एक मामले में रेलवे को एक यात्री को लाखों रुपये मुआवजा देने के आदेश दिए हैं। आयोग का कहना है कि रेलवे अधिकारियों की लापरवाही के चलते यह घटना हुई और यात्री को मिलने वाली सुविधाओं में कमी थी। खास बात है कि यह मामला 7 साल पुराना है।
एनसीडीआरसी का कहना है कि यात्री ने अपने सामान की सुरक्षा के लिए उचित सावधानी बरती थी और टीटीई आरक्षित कोच में बाहरी लोगों को आने से रोकने की अपनी जिम्मेदारी में असफल रहे। इसके बाद आयोग ने यात्री को 4.7 लाख रुपये मुआवजा देने के आदेश जारी किए। खास बात है कि एनसीडीआरसी ने रेलवे की इस बात को भी नहीं माना कि रेलवे एक्ट की धारा 100 के तहत अगर यात्री ने सामान बुक नहीं किया और उनके पास रसीद नहीं है तो उनका प्रशासन चोरी के लिए जिम्मेदार नहीं है।जस्टिस सुदीप अहलुवालिया और जस्टिस रोहित कुमार सिंह की एनसीडीआरसी बेंच ने कहा, …यह पाया गया है कि रेलवे चोरी के लिए जिम्मेदार है और संबंधित अधिकारियों की लापरवाही के चलते यात्रियों को मिलने वाली सुविधाओं में कमी थी। आयोग ने यह भी कहा कि आरक्षित कोच में सफर कर रहे यात्री और उसके सामान का ख्याल रखना रेलवे की जिम्मेदारी है।
दुर्ग के रहने वाले दिलीप कुमार चतुर्वेदी 9 मई 2017 को परिवार के साथ अमरकंटक एक्सप्रेस में कटनी से दुर्ग की यात्रा कर रहे थे। वह स्लीपर कोच में थे। उन्होंने अपने सामान को लेकर रेलवे पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई थी कि रात करीब 2.30 पर 9.3 लाख रुपये की कीमत का सामान और कैश चोरी हो गया है। इसके बाद उन्होंने दुर्ग जिला उपभोक्ता आयोग में मामला दर्ज कराया।आयोग ने दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे जीएम, दुर्ग स्टेशन मास्टर और बिलासपुर जीआरपी थाना प्रभारी को दावा की गई रकम चुकाने के आदेश दिए। इसके बाद उत्तरदाताओं ने आदेश को राज्य आयोग में चुनौती दी, जहां से जिला आयोग का आदेश रद्द कर दिया गया। इसके बाद चतुर्वेदी ने एनसीडीआरसी का रुख किया। चतुर्वेदी ने एनसीडीआरसी को बताया था कि टीटीई और रेलवे पुलिस स्टाफ रिजर्व्ड कोच में अनधिकृत लोगों को आने देने में लापरवाही बरत रहे थे। उनके वकील ने भी आयोग को बताया कि चोरी हुए सामान को चेन से बांधा गया था और दूसरे पक्ष की धारा 100 की बात को लापरवाही के मामले में नहीं माना जा सकता है।