सत्ता में बैठे लोगों के धन शोधन में शामिल होने से शासन पर जनता का विश्वास खत्म हुआ

सुप्रीम कोर्ट मनी लॉन्ड्रिंग मामले को लेकर जाताई नाराजगी
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग और इसमें सत्ता में बैठे लोगों के शामिल होने पर नाराजगी जताई है। दरअसल, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा जांच किए गए मामलों में गुजरात के पूर्व आईएएस अधिकारी प्रदीप शर्मा की याचिका खारिज कर दिया गया और कहा कि सत्ता में बैठे लोगों के धन शोधन में शामिल होने से शासन में जनता का विश्वास खत्म हुआ है और वित्तीय संस्थानों में प्रणालीगत कमजोरियां पैदा हुई हैं।
न्यायमूर्ति विक्रमनाथ और न्यायमूर्ति पीबी वराले की पीठ ने उस याचिका को भी खारिज कर दिया जिसमें प्रदीप शर्मा ने गुजरात पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दर्ज भ्रष्टाचार के कई मामलों की शुरूआती जांच का अनुरोध किया था। मनी लॉन्ड्रिंग, एक ऐसी वित्तीय धोखाधड़ी है जिसमें अपराधी अपनी सम्पत्ति के अवैध स्रोत को छिपाते हैं। इस धोखाधड़ी का मकसद कालेधन को सरकार और कानूनी एजेंसियों की नजरों से छिपाना होता है ताकि इसे बिना किसी शक के इस्तेमाल किया जा सके।
मनी लॉन्ड्रिंग, दुनिया के ज्यादातर देशों में एक गंभीर अपराध है। भारत में, प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए), 2002 के तहत मनी लॉन्ड्रिंग करने वालों को सजा और भारी जुर्माने का प्रावधान है। उधर, सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात से जुड़े धन शोधन निवारण अधिनियम मामले में कहा कि धन शोधन के दूरगामी परिणाम होते हैं, न केवल भ्रष्टाचार के व्यक्तिगत कृत्यों के संदर्भ में, बल्कि इससे सरकारी खजाने को भी काफी नुकसान होता है।
युगल पीठ ने कहा कि वर्तमान मामले में कथित अपराधों का अर्थव्यवस्था पर सीधा असर पड़ता है, क्योंकि अवैध वित्तीय लेन-देन राज्य को वैध राजस्व से वंचित करते हैं, बाजार की अखंडता को प्रभावित करते हैं और आर्थिक अस्थिरता को बढ़ावा देते हैं। सत्ता में बैठे व्यक्तियों द्वारा किए जाने वाले ऐसे कृत्य शासन में जनता के विश्वास को खत्म करते हैं और वित्तीय संस्थानों के अंदर प्रणालीगत कमजोरियों को जन्म देते हैं।