नई दिल्ली । 17वीं लोकसभा के लिए हुए आम चुनाव में राजधानी दिल्ली की 7 संसदीय सीटों पर रविवार को मतदान संपन्न हो गया। दिल्ली में वोटर टर्नआउट 60.21 प्रतिशत रहा, जो 2014 के मुकाबले करीब 5 प्रतिशत कम है। चुनाव अधिकारियों के मुताबिक भीषण गर्मी की वजह से मतदान में यह कमी आई है। मतदान में आई इस कमी ने विशेषज्ञों के साथ-साथ राजनीतिक दलों को भी गुणा-भाग के लिए मजबूर कर दिया है कि इसके मायने क्या हैं? दिल्ली में भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है। पूरी तरह पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़े भाजपा उम्मीदवारों को कांग्रेस और आप में वोटों के विभाजन से फायदे की उम्मीद है लेकिन वाकई मोदी विरोधी वोटों का बंटवारा हुआ या नहीं, इसका सिर्फ कयास ही लगाया जा सकता है। राष्ट्रीय राजधानी में इस बार 60.21 प्रतिशत रहा। पिछली बार यानी 2014 में दिल्लीवालों ने दिल खोलकर मतदान किया था। कुल 65.1 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का इस्तेमाल किया था। वहीं, 2009 में 51.84 प्रतिशत मतदान हुआ था।
सुबह मतदान में सुस्ती दिखी लेकिन शाम तक यह बढ़कर 60 प्रतिशत से ऊपर पहुंच गया। नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में सबसे ज्यादा 63.5 प्रतिशत मतदान हुआ। 62.6 प्रतिशत मतदान के साथ दूसरे नंबर पर चांदनी चौक सीट रही। ईस्ट दिल्ली में 61.9 फीसदी, वेस्ट दिल्ली में 60.6 प्रतिशत, नॉर्थ वेस्ट में 58.9 प्रतिशत, साउथ दिल्ली में 57.3प्रतिशत और नई दिल्ली में सबसे कम 56.4 प्रतिशत मतदान हुआ। रमजान की वजह से माना जा रहा था कि मुस्लिम मतदाता सुबह-सुबह या फिर शाम 4-5 बजे के बाद मतदान करेंगे। लेकिन हुआ इसके उलटा। सुबह में वोट डालने वाले मुस्लिम मतदाताओं की तादाद कम रही। 11 बजे के बाद पोलिंग बूथों पर मुस्लिम मतदाता ज्यादा दिखना शुरू हुए। मुस्लिम वोटर मुख्य तौर पर कांग्रेस के साथ जाते दिखे।
दिल्ली के शहरी मतदाताओं के मुकाबले ग्रामीण मतदाताओं ने खुलकर मतदान किया। नॉर्थ वेस्ट दिल्ली के कराला, माजरा डबास, घेवरा और कांझवला जैसे गांवों में कड़ी दोपहर के वक्त भी अच्छी खासी वोटिंग हुई। तमाम ग्रामीण बूथों पर वोट देने में महिलाएं पुरुषों से आगे रहीं। मध्यम वर्ग के वोटों में भी त्रिकोणीय विभाजन साफ नजर आई। दिल्ली की सत्ता में आने के बाद आम आदमी पार्टी 4 सालों में अपनी चमक खोई है, लेकिन अभी भी मिडल क्लास में उसकी ठीक-ठाक पकड़ है।