मेरी खामोशी को ,
अब कोई नाम ना दो ।
खामोश रहने दो इन लफ्जों को ,
इन्हें कोई आवाज़ ना दो ।
गर्त में दबी उन यादों को,
ना उकेरो दफन ही रहने दो।
मेरी पाक मोहब्बत को यूं,
बदनामी का ईनाम ना दो।
यूं बुलाकर शहर में अपने ,
बेवफाई का इल्ज़ाम ना दो।
मन्नत में मांगा है हर दफा तुम्हें,
इसे धोखे और फरेब का नाम ना दो ।
रश्मि वत्स
मेरठ (उत्तर प्रदेश)